कोरा कागज - - दो शब्द
कोरा कागज-- दो शब्द(23/9/21)
राजीव रावत
तुम्हारी
थरथराती उंगलियों की पोरों ने
मेरे दिल के कोरे कागज पर मोहब्बत के जो हर्फ लिखे थे-
वह ताजिन्दगी
अंधेरी रातों में इश्क के आसमां पर
सितारों के मानिंद रोशनी बिखरते दिखे थे-
दिल के कोरे कागज पर
मोहब्बत - ओ-अहसास के सतरंगी सपने
जो तुमने अनजाने ही उकेरे थे-
उन्होंने मेरे जीवन में
आशाओं और अभिलाषाओं के इंद्रधनुषी
कितने रंग बिखेरे थे-
समय और काल की गति से
दिल-ओ-दीवार पर लिखे अक्षर कहां मिट पाते हैं-
यादों की हवाओं
और आंखों के कोरों से छलकते पानी की बूंदों से
धुंधले अक्षर भी तन्हाई के आलम में
फिर से उभर आते हैं-
काश! तुमने
मोहब्बत की रोशनाई से न रंगा होता
मेरे दिल का कोरा कागज
तो इंतजार के बिछोने पर हर पल
इस तरह न खोया होता-
तो यह दिल भी
कमबख्त न दर्द लेता दूसरे का मजनूं बन कर,
बेफिक्र होकर
खुद भी आराम से सोता होता-
राजीव रावत
Seema Priyadarshini sahay
24-Sep-2021 10:13 PM
बहुत खूबसूरत
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Swati chourasia
23-Sep-2021 09:26 PM
Very beautiful 👌
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Rajeev Rawat
24-Sep-2021 05:20 AM
हार्दिक धन्यवाद
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Zakirhusain Abbas Chougule
23-Sep-2021 07:56 PM
Nice
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Rajeev Rawat
24-Sep-2021 05:20 AM
शुक्रिया
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